Headline Jain Teerth Parampara
Date 01-Jan-2021
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Source encyclopediaofjainism.com
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केवली-जिस दिन वीर भगवान सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए पुनः गौतम स्वामी के सिद्ध हो जाने पर उसी दिन श्री सुधर्मास्वामी केवली हुए। सुधर्मास्वामी के मुक्त होने पर जंबूस्वामी केवली हुए। पश्चात् जंबूस्वामी के सिद्ध हो जाने पर फिर कोई अनुबद्ध केवली नहीं रहे।

गौतम स्वामी के केवलज्ञान से लेकर जंबूस्वामी के मोक्षगमन तक का काल ६२ वर्ष प्रमाण है। केवलज्ञानियों में अंतिम ‘श्रीधर’ केवली कुण्डलगिरि से सिद्ध हुए। चारण ऋषियों में अंतिम ‘सुपाश्र्वचन्द्र’ नामक ऋषि हुए। प्रज्ञाश्रमणों में अंतिम वङ्कायश और अवधिज्ञानियों में अंतिम ‘श्री’ नाम के ऋषि हुए हैं। मुकुटधरों में अंतिम चंद्रगुप्त ने जिनदीक्षा धारण की, इनके पश्चात् मुकुटधारी राजाओं ने जिनदीक्षा नहीं ली है।

श्रुतकेवली- जंबूस्वामी के अनन्तर नन्दि, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवद्र्धन और भद्रबाहु मुनि ये पाँचों ही ‘चौदह पूर्वी’ इन नाम से विख्यात द्वादश अंगों के धारक पूर्ण श्रुतज्ञानी ‘श्रुतकेवली’ वर्धमान स्वामी के तीर्थ में हुए हैं। इन पाँचों का काल मिलाकर सौ वर्ष प्रमाण है।

दश पूर्वधारी-विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव और धर्मसेन ये ग्यारह मुनि अनुक्रम से ग्यारह अंग और दशपूर्व के धारक ‘दश पूर्वी’ कहलाये हैं। परम्परा से प्राप्त इन सबका काल एक सौ तेरासी वर्ष है। इनके बाद कालदोष से फिर दशपूर्वधर मुनिरूपी सूर्य नहीं हुए।

ग्यारह अंगधारी- नक्षत्रमुनि, जयपाल, पांडु, धु्रवसेन और वंâसार्य ये पाँच मुनि ग्यारह अंग के धारक हुए हैं। इन सबका काल दो सौ बीस वर्ष प्रमाण है। इनके बाद फिर कोई मुनि ग्यारह अंग धारक नहीं हुए।

आचारांगधारी-सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहार्य ये चार आचार्य आचारांग के धारक हुए हैं। इनके काल का प्रमाण एक सौ अठारह वर्ष है। इनके स्वर्गस्थ होने पर भरतक्षेत्र में फिर कोई अंग और पूर्व श्रुत के धारक नहीं हुए। गौतम स्वामी से लेकर यहाँ तक का काल छः सौ तेरासी वर्ष होता है। ६२±१००±१८३±२२०±११८·६८३।

इन उपर्युक्त आचार्यों के बाद शेष आचार्य ग्यारह अंग और चौदह पूर्वों के एकदेश के धारक हुए हैं।

पंचमकाल के अंत तक धर्मतीर्थ-जो श्रुततीर्थ धर्म प्रवर्तन का कारण है, वह बीस हजार तीन सौ सत्रह वर्षों तक चलता रहेगा, अनंतर कालदोष से व्युच्छेद को प्राप्त हो जायेगा अर्थात् पंचमकाल इक्कीस हजार वर्ष प्रमाण है, उसमें से उपर्युक्त छः सौ तेरासी वर्ष कम करने से बचे हुए प्रमाण काल तक जैनधर्म चलता रहेगा-२१०००-६८३·२०३१७

इतने मात्र बचे हुए शेष समय में चातुर्वण्र्य संघ जन्म लेता रहेगा। उस समय के लोग प्रायः अविनीत, दुर्बुद्धि, असूयक, सातभय व आठ मदों से संयुक्त, शल्य एवं गारवों से सहित, कलहप्रिय, रागिष्ठ, व्रूâर और क्रोधी होंगे।

राज्य परम्परा-जिस समय वीर भगवान मुक्ति को प्राप्त हुए उसी समय ‘पालक’ नामक अवन्तीसुत का राज्याभिषेक हुआ। साठ वर्ष तक पालक का राज्य रहा पुनः एक सौ पचपन वर्ष तक विजयवंशियों का, चालीस वर्ष तक मरुंडवंशियों का, तीस वर्ष तक पुष्यमित्र का, इसके बाद साठ वर्ष तक वसुमित्र-अग्निमित्र का, एक सौ वर्ष तक गंधर्व का, चालीस वर्ष तक नरवाहन का, दो सौ ब्यालीस वर्ष तक भृत्य-आंध्रों का पुनः दो सौ इकतीस वर्ष तक गुप्तवंशियों का राज्य रहा है।

कल्की का जन्म और कार्य-इसके बाद इन्द्र नामक राजा का पुत्र कल्की उत्पन्न हुआ, इसका नाम चतुर्मुख, आयु सत्तर वर्ष और राज्यकाल ब्यालीस वर्ष प्रमाण रहा है। महावीर के निर्वाण से इस कल्की तक का काल एक हजार वर्ष हो जाता है-६०±१५५±४०±३०±६०±१००±४०±२४२±२३१±४२·१००० वर्ष।

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