01. |
श्री शिवार्य |
इ.स.पूर्ववर्ती |
वि.सं. पूर्ववर्ती |
भगवती आराधना |
|
02. |
श्री गुणधराचार्य |
इ.स.की पूर्व प्रथम शताब्दि |
वि.सं. की पूर्व प्रथम शताब्दि |
कषायपाहुड |
- सभी अंग-पूर्व के एक देश ज्ञाता ।
- ज्ञानप्रवाद के ठीक पहले दसवीं बात के "पज्जदोस पाहुड" का ज्ञान ।
|
03. |
श्री धरसेनाचार्य |
इ.स.की पूर्व प्रथम शताब्दि |
वि.सं. की पूर्व प्रथम शताब्दि |
षटखंडागम या सत्कर्म प्राभृत के अग्रदूत/उपदेशक |
- सभी अंग-पूर्व के एक देश ज्ञाता ।
- पूर्व दिशा का चयन लाभ कहलाने वाली वस्तुका अधिकार "महाकर्मप्रकृति पाहुड" का ज्ञान ।
|
04. |
श्री पुष्पदंताचार्य |
इ.स.की पूर्व प्रथम शताब्दि |
वि.सं. की पूर्व प्रथम शताब्दि |
षटखंडागम / जीवस्थान के "सत्प्ररूपणा अधिकार" के रचयिता । |
|
05. |
श्री भूतबलि आचार्य |
इ.स.की पूर्व प्रथम शताब्दि |
वि.सं. की पूर्व प्रथम शताब्दि |
षटखंडागम ग्रंथ के शेष अन्य समस्त अधिकारों के रचयिता ।
षट्-खंड:
- 1. जीवस्थान
- 2. क्षुल्लकबंध
- 3. बंधस्वामीत्व-विचय
- 4. वेदनाखंड
- 5. वर्गणाखंड
- 6. महाबंध
|
|
06. |
श्री कुंदकुंदाचार्य |
इ.स.की पूर्व प्रथम शताब्दि |
वि.सं. की पूर्व प्रथम शताब्दि |
षटखंडागम ग्रंथ के शेष अन्य समस्त अधिकारों के रचयिता ।
|
- श्री सीमंधरप्रभु के प्रत्यक्ष दर्शन और दिव्यध्वनि श्रवण ।
- जमीन से चार उंगल उपर चलने की चारणऋद्धि
- पांच नाम :
- 1) आचार्य पद्मनंदि
- 2) कुंदकुंदाचार्य
- 3) ऐलाचार्य
- 4) वक्रग्रीवाचार्य
- 5) गृद्धपिच्छाचार्य
|
07. |
श्री अर्हदबली (गुप्तिगुप्त) |
इ.स. 38-66 |
वि.सं. 95-123 |
|
- विशिष्ट मुनि संघनायक
- एक अंग के धारण करने वाले ।
|
08. |
श्री उमास्वामी आचार्य |
इ.स. 44-85 |
वि.सं. 101-142 |
‘‘तत्त्वार्थसूत्र’’ (मोक्षशास्त्र) (संस्कृत भाषा में लिखा गया जिनागम का पहला ग्रंथ है) |
- श्री कुंदकुंदाचार्य देव के शिष्य ।
|
09. |
श्री बप्पदेव आचार्य |
इ.स. की प्रथम शताब्दि का मध्यभाग |
वि.सं. की प्रथम शताब्दि |
- व्याख्या प्रज्ञप्ति (षट्-खंडागम के प्रथम पांच खंड पर टीका और छठवें खंड पर 5008 श्लोक प्रमाण टीका)
- कषाय पाहुड पर टीका । (60000 श्लोक प्रमाण) वर्तमान में अनुपलब्ध ।
|
|
10. |
श्री आर्यमंक्षु आचार्य |
इ.स. 73-123 |
वि.स. 130-180 |
|
|
11. |
श्री नागहस्ति आचार्य |
इ.स. 93-162 |
वि.स. 150-219 |
|
|
12. |
श्री जयसेनाचार्य (वसुबिंदु) |
इ.स. दूसरी शताब्दि |
वि.स. दूसरी शताब्दि |
|
- कषायपाहुड-ज्ञाता
- श्री कुंदकुंदाचार्यदेव के शिष्य ।
|
13. |
श्री समन्तभद्र |
इ.स. की दूसरी शताब्दि |
वि.सं. 117-242 |
- रत्नकरंड श्रावकाचार
- देवागमस्तोत्र (आप्तमीमांसा)
- स्वयंभू-स्तोत्र
- युकत्यनुशासन
- स्तुतिविद्या (जिन शतक)
- प्राकृत व्याकरण
- तत्त्वानुशासन
- प्रमाण पदार्थ
- कर्मप्राभृत टीका
- गंधहस्ति महाभाष्य (अनुपलब्ध) - (षट्-खंडागम पर टीका)
|
|
14. |
श्री कुमारस्वामी (स्वामी कार्तिकेय) |
इ.स. की दूसरी शताब्दी मध्य |
वि.सं. की दूसरी शताब्दी के अंतसे तीसरी शताब्दि का पूर्वार्ध |
|
|
15. |
श्री शामकुंडाचार्य |
इ.स. की तीसरी शताब्दि का पूर्वार्ध |
|
- पद्धति टीका (1200 श्लोक प्रमाण)
- षट्-खंडागम के 1 से 5 खंड पर और कषायपाहुड की टीका
|
- षट् खंडागम और कषायपाहुड के ज्ञाता
|
16. |
श्री विमलसूरि |
इ.स. की चौथी शताब्दि पूर्वार्ध |
वि.सं. की चौथी शताब्दि |
- पउमचरिय (प्राकृत में प्रथमानुयोग का शास्त्र)
|
|
17. |
श्री दत्ताचार्य |
इ.स. की चौथी शताब्दि का मध्य भाग |
|
|
|
18. |
श्री देवनंदि आचार्य (पूज्यपाद) |
इ.स. पांचवीं शताब्दि का मध्य भाग |
|
- सर्वार्थसिद्धि : तत्त्वार्थसूत्र की टीका
- - समाधितंत्र (समाधि शतक)
- इष्टोपदेश
- जैनेन्द्र व्याकरण
- वैद्यसार संग्रह (वैदिक विषय का ग्रंथ)
- सिद्धिप्रिय स्तोत्र (चतुर्विंशति स्तव)
- जन्माभिषेक (शिलालेख (नं. 40, श्रवणबेलगोला)
- अर्हद प्रतिष्ठा लक्षण
- दसभक्ति
- सारसंग्रह (धवल में उल्लेख)
- पाणिनी का अधूरा व्याकरण ग्रंथ पूरा किया ।
- शब्दावतार (पाणीनी के व्याकरण पर भरोसा)
- शांति अष्टक स्तोत्र
|
|
19. |
श्री सर्वनंदि आचार्य |
इ.स. की पांचवीं शताब्दि मध्य में |
वि.सं. छठवीं शताब्दि के पूर्व में |
- लोकविभाग (करुणानुयोग का शास्त्र जिसका भाषा परिवर्तन श्री सिंहसूरि ऋषि ने किया है)
|
|
20. |
श्री पात्रकेसरी |
इ.स. 494-543 |
वि.सं. 501-600 |
- पात्रकेसरी स्तोत्र (जिनेन्द्र गुण संस्तुति)
- त्रिलक्षणकदर्शन-इस ग्रंथ का आधार आचार्य अकलंकदेव, विद्यानंद और अन्य उत्तरवर्ती आचार्यों के ग्रंथ में दिखने में आया है ।
|
|
21. |
श्री यतिवृषभ आचार्य |
इ.स. की छठवीं सदी |
वि.सं. की छठवीं सदी - सातवीं सदी का पूर्वार्ध |
- चूर्णिसूत्र (कषायपाहुड के आधार पर रचित)
- तिलोयपण्णति (करणानुयोग)
|
- कर्मप्रवाद पूर्व (आठवें पूर्व के ज्ञाता ।)
|
22. |
श्री योगीन्दुदेव आचार्य |
इ.स. 551-600 (लगभग) |
वि.सं. 608-658 (लगभग) |
|
|
23. |
श्री सिद्धसेन दिवाकर (दीक्षा नाम : कुमुदचंद्र) |
इ.स. छठवीं शताब्दि |
वि.सं. सातवीं शताब्दि |
|
|
24. |
श्री उच्चारणाचार्य |
इ.स. की सातवीं शताब्दि |
वि.सं. की सातवीं शताब्दि |
- उच्चारणावृत्ति (कषायपाहुड का आधार लेकर रचना की गई है)
|
|
25. |
श्री मानतुंगाचार्य |
इ.स. की सातवीं शताब्दि |
वि.सं. की सातवीं शताब्दि |
|
|
26. |
श्री अकलंक देव |
इ.स. 620-680 |
वि.सं. 677-737 |
- तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति अथवा राजवार्तिक (तत्त्वार्थसूत्र की टीका)
- अष्टशती (आप्तमीमांसा की टीका)
- लघीयस्त्रय
- न्याय विनिश्चय-सिद्धि विनिश्चय
- प्रमाण संग्रह
|
|
27. |
श्री रविषेणाचार्य |
इ.स. 643-383 |
वि.सं. 700-740 |
- पद्मपुराण (जैन धर्म रामायण) (रचना पूर्ण वि.सं. 733)
|
|
28. |
श्री जयसिंहनंदि |
इ.स. की सातवीं शताब्दि का उत्तरार्ध / आठवीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
वि.सं. की आठवीं शताब्दि |
|
|
29. |
श्री जयसेनाचार्य(2) |
इ.स. 723-773 |
वि.सं. 780-830 |
|
- षट्-खंडागम के ज्ञाता जिनसेन स्वामी के दादा गुरु
|
30. |
श्री अपराजित (विजय) |
इ.स. की आठवीं शताब्दि |
वि.सं. की आठवीं शताब्दि के अंतमें |
- विजयोदया (भगवती आराधना की टीका)
|
|
31. |
श्री जिनसेन स्वामी (1) |
इ.स. 748-818 |
वि.सं. 805-870 |
- हरिवंश पुराण (जैन महाभारत नेमिनाथ चरित्र) (वर्धमानपुर-वढवाण में रचना की गई है)
|
- गुरु : श्री कीर्तिषेण मुनि
|
32. |
श्री आर्यनंदी आचार्य |
इ.स. 767-798 |
वि.सं. 824-855 |
|
- तमिल क्षेत्र में शिवभक्त आंदोलन के बाद जैन समाज के पुनर्गठन में एक प्रमुख योगदान । मदुरै में कई जगह शिलालेख में नाम लिखा है ।
|
33. |
श्री वीरसेनस्वामी |
इ.स. 770-827 |
वि.सं. 827-884 |
- "धवला, (षटखंडागम टीका) (72000 श्लोक कषाय प्राभृत की टीका)
|
- ज्योतिष, गणित, निमित्त आदि विषयों के ज्ञाता । शिक्षागुरु : श्री एलाचार्य । (अनुमानित) दीक्षागुरुः श्री आर्यनंदि (अनुमानित)
|
34. |
श्री जयसेनाचार्य (3) |
इ.स. 770-827 |
वि.सं. 827-884 |
|
- दीक्षागुरु : श्री आर्यनंदि
- धवला टीका के रचयिता – श्री वीरसेनस्वामी के
|
35. |
श्री वादिभसिंहसूरि (1) |
इ.स. 770-860 |
वि.सं. 827-917 |
|
|
36. |
श्री विद्यानंदि आचार्य |
इ.स. 770-860 |
वि.सं. 827-917 |
- आप्त परीक्षा
- प्रमाण परीक्षा
- पत्र परीक्षा
- सत्यशासन परीक्षा
- श्रीपुप-पार्श्वनाथ स्तोत्र
- विद्यानंद महोदय (अनुपलब्ध)
- अष्टसहस्त्री (आप्तमीमांसा टीका)
- तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिक (तत्त्वार्थसूत्र पर टीका)
- युक्त्यानुशासनालंकार (युक्त्यानुशासन स्तोत्रकी टीका)
|
|
37. |
श्री उद्योतनसूरि |
इ.स. आठवीं शताब्दी |
वि.सं. आठवीं शताब्दी |
|
|
38. |
श्री महावीराचार्य |
इ.स. 800-830 |
वि.सं. 857-887 |
|
|
39. |
श्री जिनसेनाचार्य (2) |
इ.स. 818-878 |
वि.सं. 875-935 |
- जयधवला (कषायपाहुड-टीका) (गुरु श्री वीरसेनस्वामी का अधूरा ग्रंथ-40000 श्लोक लिख के पूरा किया : कुल श्लोक 60000
- आदिपुराण (महापुराण का प्रारंभिक भाग)
- पार्श्वाभ्युदय
|
|
40. |
श्री उग्रादित्य आचार्य |
इ.स. नववीं शताब्दी का पूर्व |
वि.सं. नववीं शताब्दी का उत्तरार्ध |
- कल्याणकारक (वैदिक ग्रंथ 2500 श्लोक)
|
|
41. |
श्री रामसिंह |
इ.स. 843-943 |
वि.सं. 901-1000 |
|
|
42. |
श्री अनंतकीर्ति आचार्य |
इ.स. नववीं शताब्दि का उत्तरार्ध |
वि.सं. दसवीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
- बृहद् सर्वज्ञसिद्धि
- लघु सर्वज्ञसिद्धि
|
|
43. |
श्री गुणभद्राचार्य |
इ.स. 870-900 |
वि.सं. 927-957 |
- आदिपुराण (83 सर्ग से अंत तक) (गुरु जिनसेनस्वामी रचित अधूरा ग्रंथ पूरा किया ।
- उत्तर पुराण
- आत्मानुशासन
- जिनदत्त चरित
|
|
44. |
श्री अमृतचंद्राचार्य |
इ.स. 905-955 |
वि.सं. 962-1012 |
- श्री पुरुषार्थसिद्धि उपाय
- तत्त्वार्थसार
- लघुतत्त्वस्फोट (शक्तिगणित कोष)
- आत्मख्याति
- तात्पर्यदीपिका<
- प्रवचनसार टीका
- समयव्याख्य
- पंचास्तिकाय टीका
|
|
45. |
श्री तुम्बलूट |
इ.स. दसवी शताब्दि के पहले (उम्मीद के मुताबिक) |
|
- षट् खंडागम के प्रथम पांच खंड पर टीका
- कषायप्राभृत-टीका
|
|
46. |
श्री अमितगति आचार्य - (1) |
इ.स. 923-963 |
वि.सं. 980-1020 |
|
|
47. |
श्री हरिषेणाचार्य |
इ.स. दसवी शताब्दि |
वि.सं. दसवी शताब्दि के अंतमें |
|
|
48. |
श्री देवसेन आचार्य |
इ.स. 933-955 |
वि.सं. 990-1012 |
- दर्शनसार
- तत्त्वसार
- भावसंग्रह
- लघु नयचक्र
- आलाप पद्धति
- आराधना सार
|
|
49. |
श्री इन्द्रनंदि |
इ.स. की दसवीं शताब्दि |
वि.सं. की दसवीं शताब्दि के अंत में |
- श्रुतावतार
- ज्वालामालिनी कल्प
|
|
50. |
श्री अभयनंदि आचार्य |
इ.स. 943-993 |
वि.सं. 1000-1050 |
- तत्त्वार्थवृत्ति (तत्त्वार्थसूत्र-टीका)
- कर्मप्रकृति रहस्य
|
|
51. |
श्री सोमदेव आचार्य |
इ.स. 943-998 |
वि.सं. 1000-1055 |
- नीति वाक्यामृत
- यशस्तिलक चंपू (वि.सं. 1016)
- अध्यात्म तरंगिणी
|
|
52. |
श्री वीरनंदि आचार्य |
इ.स. 950-999 |
वि.सं. 1007-1056 |
|
|
53. |
श्री प्रभाचंद्र आचार्य |
इ.स. 950-1020 |
वि.सं. 1007-1077 |
|
- प्रमेयकमलमार्तंड (परिक्षामुख-व्याख्या)
- न्याय कुमुदचंद्र (लघियस्त्रय-व्याख्या)
- रत्नकरंड श्रावकाचार-टीका
- समाधितंत्र टीका
- क्रियाकलाप टीका
- आत्मानुशासन तिलक (आत्मानुशासन टीका)
- प्रवचनसार-सरोज भास्कर (प्रवचनसार-व्याख्या)
- तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण (सर्वार्थसिद्धि व्याख्या)
- गंधकथा कोष (स्वतंत्र रचना)
- शब्दाम्भोज भास्कर (जैनेन्द्र व्याकरण व्याख्या)
- शाक्ययन न्यास (शाक्यन व्याकरण व्याख्या)
|
54. |
श्री महासेनाचार्य |
इ.स. दसवीं शताब्दि उत्तरार्ध |
वि.सं. ग्यारहवीं शताब्दि पूर्वार्ध |
|
|
55. |
श्री माधवचंद्र त्रैविध |
इ.स. 975-1000 |
वि.सं. 1032-1057 |
|
- गुरु : श्री नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती
|
56. |
पद्मनंदि सैद्धांतिक (प्रथम) |
इ.स. 977-1043 |
वि.सं. 1034-1100 |
- जम्बूद्वीप पण्णत्ति
- धम्म रसायण
- पंच संग्रह
|
|
57. |
श्री नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती |
इ.स. दसवीं शताब्दि अंतमें |
वि.सं. ग्यारहवीं शताब्दि |
- गोम्मटसार (रचनाकाल : वि.सं. (1037-1040)
- त्रिलोकसार
- लब्धिसार
- क्षपणासार
|
|
58. |
श्री अमितगति आचार्य |
इ.स. 983-1023 |
वि.सं. 1040-1080 |
- सुभाषित रत्नसंदोह
- धर्मपरीक्षा
- भावना द्यात्रिंशतिका
- पंचसंग्रह
- उपासकाचार
- सामायिक पाठ
|
|
59. |
श्री इन्द्रनंदि आचार्य |
इ.स. की 10 वीं शताब्दि का उत्तरार्ध / 11 वीं शताब्दि पूर्वार्ध |
वि.सं.की 11 वीं शताब्दि का / 12 वीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
- छेदपिंड (प्रायश्चित्त शास्त्र)
|
|
60. |
श्री नयनंदि आचार्य |
इ.स. 993-1050 |
वि.सं. 1050-1107 |
- सुंदसण चरिउ (वि.सं. 1100)
- सयल विहिविहाण काव्य
|
|
61. |
श्री जयसेनाचार्य (4) |
इ.स. 998 |
वि.सं. 1055 |
- धर्मरत्नाकर (वि.सं. 1055 में पूरा हुआ ।)
|
|
62. |
श्री माणिक्यनंदि आचार्य |
इ.स. 1003-1028 |
वि.सं. 1060-1085 |
|
|
63. |
श्री शुभचंद्र आचार्य (1) |
इ.स. 1003-1068 |
वि.सं. 1060-1125 |
|
|
64. |
श्री वादिराज आचार्य |
इ.स. 1010-1065 |
वि.सं. 1067-1122 |
- एकीभाव स्तोत्र
- पार्श्वनाथ चरित्र (वि.सं. 1082 में पूरा हुआ )
- न्यायविनिश्चय विवरण
- प्रमाण निर्णय
- यशोधर चरित
|
|
65. |
श्री ब्रह्मदेवसूरि |
इ.स. 1013-1053 |
वि.सं. 1070-1110 |
- बृहद् द्रव्यसंग्रह-टीका
- परमात्मप्रकाश-टीका
- तत्त्वदीपिका-प्रतिष्ठा तिलक
- कथा कोष
|
|
66. |
श्री नेमिचंद्र सिद्धांति देव (3) |
इ.स. 1018-1068 |
वि.सं. 1075-1125 |
|
|
67. |
श्री मल्लिषेण आचार्य (1) |
इ.स. 1047-11वीं शताब्दि के मध्य में |
वि.सं. 1104-12वीं शताब्दि के पूर्वार्ध में |
|
|
68. |
श्री वसुनंदि आचार्य |
इ.स. 1068-1118 |
वि.सं. 1125-1175 |
- प्रतिष्ठासार संग्रह
- उपासकाचार (उपासकाध्ययन)
- आचारवृत्ति मूलाचार की टीका
|
|
69. |
श्री पद्मनंदि आचार्य (5) |
इ.स. 11वीं शताब्दि का उत्तरार्ध |
वि.सं. 12वीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
|
|
7૦. |
श्री रामसेन मुनि |
इ.स. 11वीं शताब्दि का उत्तरार्ध |
वि.सं. 12वीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
|
|
71. |
श्री जयसेनाचार्य (5) |
इ.स. 11वीं शताब्दि का उत्तरार्ध /12 वीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
वि.सं. 12वीं शताब्दि |
|
|
72. |
श्री नरेन्द्रसेन आचार्य |
इ.स. 11वीं शताब्दि का उत्तरार्ध |
वि.सं. 12वीं शताब्दि का पूर्वार्ध |
|
|
73. |
श्री बालचंद्र (1) |
इ.स. 12वीं शताब्दि की शुरूआत |
वि.सं. 12वीं शताब्दि का उत्तरार्ध |
- समयसार टीका
- प्रवचनसार टीका
- पंचास्तिकाय टीका
|
|
74. |
पंचास्तिकाय टीका सिद्धांत चक्रवर्ती |
इ.स. 1130-1190 (अंदाजित) |
वि.सं. 1187-1287 |
|
- गुरु : मेघचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती
|
75. |
श्री अनंतवीर्य (लघु) |
इ.स. 11वीं शताब्दि के मध्य में |
वि.सं. 12वीं शताब्दि के उत्तरार्ध में |
|
|
76. |
श्री पद्मप्रभमलधारिदेव |
इ.स. 12वीं शताब्दि का मध्य भाग |
वि.सं. 13वीं शताब्दि के पूर्वार्ध में |
- तात्पर्यवृत्ति (नियमसार टीका)
- पार्श्वनाथ स्तोत्र (लक्ष्मी स्तोत्र)
|
- गुरु : वीरनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती
|
77. |
श्री भावसेन आचार्य |
इ.स. 13वीं शताब्दि |
वि.सं. 13वीं शताब्दि के मध्य में |
- प्रमाप्रमेय
- कातंत्ररूपमाला
- भुक्ति-मुक्ति विचार
- विश्व तत्त्वप्रकाश
|
|
78. |
श्री अभयचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती |
इ.स. 1249-1279 |
वि.सं. 1306-1336 |
- मंद प्रबोधिनी (गोम्मटसार टीका)
- कर्म प्रकृति
|
|
79. |
श्री बालचंद्र सैद्धांतिक (2) |
इ.स. 13वीं शताब्दि |
वि.सं. 12वीं शताब्दि का |
|
|
80. |
श्री श्रुत मुनि |
इ.स. 13वीं शताब्दि के अंत में |
वि.सं. 14वीं शताब्दि का उत्तरार्ध |
- परमागमसार
- आस्रवत्रिभंगी
- भावत्रिभंगी
|
- (दीक्षागुरु : अभयचंद्र)
(अणुव्रत गुरु : बालचंद्र सैद्धांतिक)
|
81. |
श्री भास्करनंदि |
इ.स. 13वीं शताब्दि के अंत में |
वि.सं. 14वीं शताब्दि के मध्य में |
- ध्यानस्तव
- तत्त्वार्थवृत्ति
- सुखबोध टीका
|
|