ब्रह्म जय सागर
ये सरस्वती गच्छ मूल संघ बलात्कार गण में हुए हैं। इनका समय 18 वीं सदी का पूर्वार्ध है। इनके द्वारा रचित तीन रचनाएं उपलब्ध हैं - सीता हरण, अनिरुद्ध हरण, सगर चरित।