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Kavi Gunbhadra

कवि गुण भद्र

कवि गुणभद्र काष्ठा संघ के भट्टारक मलय कीर्ति के शिष्य थे और भट्टारक यश कीर्ति के प्रसिद्ध थे। कवि गुणभद्र को कथा साहित्य का विशेषज्ञ माना गया है। कवि गुणभद्र संयमी, धीर, उत्कृष्ट आचरण के स्वामी, मधुर भाषी और सरल स्वभावी थे। गुणभद्र कवि ने अनेक प्रतिष्ठा विधि भी संपन्न कराई हैं। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के अनेक जैन मंदिरों में अनेक प्रतिमाओं पर इनका नाम उल्लिखित है। इनका समय 15 वीं शताब्दी के अंतिम या 16वीं शताब्दी के पूर्वार्ध का माना गया है।
कवि गुणभद्र ने 15 कथा ग्रंथों की रचना की है। जो निम्न प्रकार हैं -
1. श्रावक द्वादशी विधान कथा
2. पाक्षिक व्रत कथा
3. आकाश पंचमी कथा
4. चंद्रायण व्रत कथा
5. चंदन षष्ठी कथा
6. नरक उतारो दुग्धा रस कथा
7. नि:दुख सप्तमी कथा
8. मुकुट सप्तमी कथा
9. पुष्पांजलि कथा
10. रत्न्त्रय व्रत कथा
11. दशलक्षण व्रत कथा
12. अनंत व्रत कथा
13. लब्धि विधान कथा
14. षोडश कारण व्रत कथा
15. सुगंध दशमी कथा
इन सभी व्रत कथाओं में व्रत का स्वरूप आचरण विधि और उनकी फल प्राप्ति का वर्णन किया गया है।