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Kavi Walh

कवि वल्ह या बूचीराज

कवि वल्ह या बूचीराज मूल संघ के भट्टारक पद्मनंदी की परंपरा में हुए हैं। ये राजस्थान के निवासी थे। कवि वल्ह अच्छे कवि होने के साथ-साथ गहन स्वाध्याय भी थे। उन्हें अब अपभ्रंश और लोक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इनका समय 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध का माना गया है।
इनकी 7 रचनायें प्राप्त होती हैं।
1.  मयणजुज्झ (मदन युद्ध) - इस रचना का उद्देश्य मनो विकारों पर विजय प्राप्त करना है। इस काव्य में 159 पद्य हैं। जिसमें आदिनाथ मुनिराज का मदन अर्थात काम के साथ युद्ध दिखला कर उनकी विजय बतलाई है। इसे युद्ध शैली में लिखा गया है।


2.  संतोष तिलक जयमाल- इसमें युद्ध की भूमिका के आधार पर संतोष द्वारा लोभ पर विजय प्राप्त करने का वर्णन है। इसमें 131 पद्य हैं।

3.  चेतन पुद्गल धमाल- इसका दूसरा नाम अध्यात्म धमाल भी है। यह भी एक रूपक काव्य है। इसमें कुल 136 पद हैं। इसमें पुद्गल की संगति से होने वाली चेतन की विकृत परिणति का सुंदर वर्णन किया गया है।

4. टंडाणा गीत- यह उपदेश शैली की रचना है। इसका उद्देश्य जगत से वैराग्य कराकर स्वरूप में स्थिति करना है। जीव की अनादि काल की भूल को मिटाकर आत्म संबोधन किया गया है।


5. भुवन कीर्ति गीत - इसमें 5 पद हैं। जिसमें भुवन कीर्ति के गुणों का वर्णन किया गया है।


6.  नेमिनाथ बसंत - इसमें 23 पद हैं। इसमें मुख्यत: भगवान नेमिनाथ के वैराग्य का चित्रण किया गया है।

7. नेमिनाथ बारहमासा - नेमिनाथ के वन जाने के बाद 12 महीनों में राजमती के उदगारोन को प्राकृतिक सौंदर्य और विशेषताओं से व्यक्त किया गया है। यह रचना अत्यंत सरस और मार्मिक है।