Kavi Yashkirti
कवि यश:कीर्ति
जैन शासन के अपभ्रंश भाषा के कवियों में कवि यश:कीर्ति का नाम भी विशेष उल्लेखनीय है। यश:कीर्ति नाम के कई कवि और आचार्य हुए हैं जिनमें से कई ने अपभ्रंश काव्यों की रचना की है। यश:कीर्ति प्रथम के जीवन के बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है। फिर भी पूर्वापर ग्रंथों के आधार से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कवि का समय 11 वीं शताब्दी के अंत और 12वीं शताब्दी के प्रारंभ में होगा। कवि यश:कीर्ति ने चंद्रप्रभ चरित्त की रचना की है। इसे 11 संधियों में विभक्त किया है। इस ग्रंथ में कवि ने आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभ की कथा गुम्फित की है। इस कथा में तीर्थंकर चंद्रप्रभ के पूर्व भवों का वर्णन, वर्तमान भव का वर्णन, वैराग्य का कारण, बारह भावना और निर्वाण प्राप्ति की चर्चा की है।